मनोहर दुकान से घर लौटा तो उसकी नज़र फर्श पर पड़े लिफाफे पर पड़ी।लिफाफा देखकर वह चोंका।आज अचानक किसका पत्र आ गया।शारदा का तो हो नही सकता।विदेश से आने वाले लिफाफे को तो दूर से ही पहचाना जा सकता है।शारदा हमेशा उसे दुकान के पते पर ही पत्र भेजती है।
घर के पते पर उसके पिता भी पत्र डालते है लेकिन वह हमेशा पोस्टकार्ड ही डालते है।जिसमे पैसे मिलने की सूचना के साथ घर के समाचार भी होते है।लिफाफा देखते ही वह समझ गया था कि पिताजी का नही हो सकता।फिर किसका था?
उसने मन मे उठे प्रश्न का उत्तर जानने के लिए लिफाफा उठा लिया।उसने भेजने वाले का नाम पढ़ा तो चोंक पड़ा।पत्र भेजने वाली कोई और नही।सुशीला थी।आज अचानक सुशीला को उसकी याद कैसे आ गई।मनोहर लिफाफे के साथ खाट पर आ पड़ा।सुशीला ने पत्र में लिखा क्या है?यह जानने के लिए उसने लिफाफा खोल डाला।
"मीरा मर गई,"पहली लाइन पढ़ते ही उसने घृणा से मुंह सिकोड़ा था,"अब मरी है।उसे बहुत पहले ही मर जाना चाहिए था।"
मीरा का नाम जुबान पर आते ही उसका मुंह अजीब कसैलासे हो गया था।मीरा ने उससे बेवफ़ाई की थी।मीरा को उसने चाहा था।उससे प्यार किया था।लेकिन मीरा ने उसके प्यार का मख़ौल उड़ाया था।मनोहर अतीत में भटक गया।गांव लोहवन जमुना नदी के उस पार।
मनोहर अपने दोस्तों के संग शास्त्रीजी के घर पहुंचा तो मीरा और उसकी सहेलियों को देखकर चोंका था।लड़कियां किताबे खोलकर हंस हंस कर बाते कर रही थी।मनोहर उन्हें देखकर बोला,"ये यहां पै आइवे लग गई तौ अपनी पढ़ाई तौ है गई भैया।"
सब लड़के लड़कियों से दूर हटकर बैठ गए।शास्त्रीजी गांव के स्कूल मे संस्कृत के अध्यापक थे।इस गांव का एक सेठ जो अपने परिवार के साथ मुम्बई में रहता था।अपनी हवेली शास्त्रीजी को रहने के लिए दे रखी थी।सेठ उनसे किराया नही लेता था।शास्त्रीजी के रहने से हवेली की साफ सफाई और देखभाल हो जाती थी।सेठ अपने परिवार के साथ साल में दो बार ही अपने गांव आता था।शास्त्रीजी अविवाहित थे।इसलिए अकेले ही रहते थे।
जो लड़के संस्कृत मे कमजोर थे।शास्त्रीजी उन्हें घर बुलाकर पढ़ाया करते थे।लड़को के आते ही वह पाठ पढ़ाने लगे।पाठ पढ़ाकर वह बोले,"अब याद करो।"
वह अंदर जाकर खाना बनाने लगे।
"तेने वो गानों सुनो है"।शास्त्रीजी के अंदर जाते ही मीरा ,मनोहर की और देखते हुए माला से बोली थी।
"कौनसो?"माला ने पूछा था।
"अरे वो ही।मोहे भूल गए सांवरिया।"
"नही री।तू सुना।"
माला के कहने पर मीरा मुस्कराकर धीरे धीरे गाना गाने लगी।मीरा इसी तरह हंसी ठिठोली करती रहती थी।वह लड़कियों की केंद्र बिंदु थी।हंसना,गाना और मजाक सुनकर लड़को का मन भी पढ़ने में नही लग रहा था।
"अब तुम लोग जाओ,"शास्त्रीजी बाहर आते हुए बोले,"छोरियों तुम्हे पढ़ना हो तो यहाँ आना।हंसी मजाक करनी हो तो घर पर ही रहना।"
लड़के लडकिया तो चले गए लेकिन मनोहर शास्त्रीजी से बाते करने लगा।शास्त्रीजी बीच की मंज़िल पर रहते थे।बाते करने के बाद मनोहर जीने की तरफ बढ़ गया।हवेली की सीढ़ियां घुमावदार और संकरी थी।जीने मे रोशनी की कोई व्यवस्था नही थी।इसलिए अंधेरा रहता था।इसलिए जीना चढ़ते उतरते समय सावधानी बरतनी पड़ती थी।मनोहर धीरे धीरे सम्हलकर सीढ़ियां उतर रहा था।फिर भी किसी से टकरा गया।
"कौ है रे तू?"मनोहर बोला था।
"डरप गयो।मैं हूं"।
"मैं कौन?"
"मीरा।"